नदियाँ भारत की संस्कृति में विशेष महत्व रखता है। नदियों के बिना हमारी संस्कृति अधूरी रह जाएगी। हमारा पूरा इतिहास नदियों से ही प्रारंभ होता है। नदियाँ जीवन देने वाली है, इसलिए इसकी उपासना माँ और देवी के रूप में की जाती है। हर छोटी-बड़ी नदी अपने क्षेत्र के लिए सांस्कृतिक-सामाजिक-धार्मिक-आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होती है।
इसी तरह हम अब अपने क्षेत्र की प्रमुख नदी आमनेर के बारे में जानेंगे।
सदानीरा आमनेर : उद्गम स्थल
आमनेर नदी खैरागढ़-छुईखदान-गंडई की प्रमुख नदी है। जो जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर लछनाटोला से निकलती है। लछनाटोला एक ग्राम पंचायत भी है, जो लांजी जाने वाली SH-22 पर स्थित गड़ाघाट से करीब 3 किलोमीटर दूर है। जिसे खैरागढ़-दाऊचौरा-पांडादाह-बैगाटोला होते हुए पहुंचा जा सकता है।
आमनेर नदी गंगा, यमुना, कावेरी, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों की तरह सदानीरा नदी है। अर्थात आमनेर नदी का जल भी अपने उद्गगम स्थल से वर्ष भर बुलबुले के रूप में स्वतः निकल रहता है। स्थानीय निवासी बताते है इस स्थल के करीब एक गुफा है जहाँ बाघ रहा करते थे। इस बाघमाढ़ा को ही स्थानीय निवासी बाघद्वार कहते है। सम्भवतः इसी बागद्वार स्थल के कारण आमनेर को बागद्वार नदी भी कहा जाता है। जो कि यह आमनेर का प्रारंभिक नाम है।
उदगम स्थल के करीब एक आम का बहुत पुराना पेड़ है जिसका जड़ काफी दूर तक फैला हुआ है। इसी जड़ से आमनेर का जल अपने आप बुलबुले के रूप में निरंतर निकल रहा है। चूंकि यह पानी आम के जड़ से निकल रहा है और जड़ को गोंडी भाषा में नेर कहते है, इसलिए इसे नदी को आम का जड़(नेर) अर्थात आमनेर कहा गया। बुलबुले के रूप में निकलते पानी को आसानी से देख सकते है। अब इस स्रोत को एक कुंड का रूप दे दिया गया। ताकि आस-पास के मिट्टी का कटाव न हो सके। कुंड के अंदर किसी प्रकार की गंदगी या कचरे का जमाव न हो इस उद्देश्य से उसके ऊपर लोहे तार की जाली को लगा दिया गया है, तथा इसका पानी बिना कटाव किए बह सके इसके लिए दो काले रंग की पाईप को लगा दिया गया।
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