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ठाड़ पानी जलप्रपात, सरईपतेरा, छुईखदान, केसीजी


जैसे बस्तर का तीरथगढ़ वैसे केसीजी का ठाड़पानी

साथियों इस शनिवार स्कूल के बाद हमारे जिले के अब तक का ज्ञात सबसे ऊंचा जलप्रपात ठाड़पानी जाना हुआ। जिसकी शोभा को देखकर मन प्रफुल्लित हो गया। प्रकृति से इस तरह जुड़ना आंनद की अनुभूति होती है। ठाड़पानी जलप्रपात एक तरह से छत्तीसगढ़ के तीरथगढ़ जलप्रपात, चित्रकोट जलप्रपात जैसा है। हम यहाँ भी तीरथगढ़ जलप्रपात जैसा लुफ्त उठा सकते है। ठाड़पानी नाम ही नही साथियों हकीकत में इस झरने का पानी एकदम ठाड़ मतलब सीधा-सीधा नीचे गिर रहा है।

ठाड़पानी जलप्रपात हमारे जिले खैरागढ़-छुईखदान-गंडई के छुईखदान विकासखंड के साल्हेवारा के पास सरईपतेरा में देखने को मिला। यहाँ पहुंचने के लिए साल्हेवारा से हम भाजीडोंगरी फिर नचनिया गए। नचनिया के बाद लालपुर घाट होते हुए सरईपतेरा पहुंचे। 



साहित्यकार श्री राजकुमार मसखरे(भदेरा), शिक्षक श्री प्रीतम मेरावी(सरईपतेरा), शिक्षक श्री रामाधीन रजक(लमरा), शिक्षक श्री चंद्रश लाल रोडगे(जंगलपुर), शिक्षक श्री पारस जंघेल(कोर्राय), भाई अनुज साहू(अचानकपुर), भाई सागर प्रजापति(अचानकपुर), भाई कन्हैया साहू(चुचरूंगपुर) और मैं चेतराम वर्मा(संडी) इस सफर में साथ रहें।

साथियों यहाँ तक पहुंचने के दूरी की बात करें तो जिला मुख्यालय खैरागढ़ से साल्हेवारा लगभग 62 किलोमीटर है। वही साल्हेवारा से सरईपतेरा लगभग 10-12 किलोमीटर है। उसके बाद सरईपतेरा से लगभग 3-4 किलोमीटर पर ठाड़पानी जलप्रपात मिलेगा। अगर आप अभी बारिश में जाना चाहते है तो बाइक से जाना ही सही है, अन्य मौसम में कार से भी जा सकते है।

हम सरईपतेरा गाँव से मुरुम बिछा हुआ कच्ची सड़क पर चलते हुए ठाड़पानी जलप्रपात के ऊपरी हिस्से पर पहुंचे। यहाँ तक पहुंचने के लिए हमने इस दुर्गम रास्ते में तीन बार एक नाले को पार किया। संभवतः इसी नाले का पानी ही इस विशाल झरने का निर्माण करता है। 

जब हम जलप्रपात के ऊपरी हिस्से पर पहुंचे तो हमें गहरी खाई  मिली। इस घाटी की सुंदरता देखते ही बनती है। हमने यही से अपना फ़ोटो लेना शुरू किया। लेकिन बहुत गहरी खाई होने के कारण खतरा हो सकता है। इसलिए यहाँ पर सावधानी बरतनी जरूरी है।

मसखरे सर जी बता रहे थे कि बारिश के समय ही इस झरने का प्राकृतिक सौंदर्य और बढ़ जाता है। झरने में पानी फरवरी-मार्च तक गिरता है। इसके चारों तरफ घने जंगल, ऊंचे-ऊंचे पहाड़, झरने की झर-झर आवाज मन को बहुत प्रफुल्लित करता है। मैं और भाई कन्हैया ने तो झरने में नहाते हुए खूब आनंद लिए।

इसके आस-पास अनेक प्रकार के वनस्पति, पेड़ पौधे देखने को मिले, साजा, सरई, सागौन, तेंदू, जंगली केला, जंगली कोचई, जंगली हल्दी, खास बात ये रही कि मुझे मंढ़ीपखोल गुफा के बाद यहां अधिक मात्रा में मोहलइन पाना देखने को मिला, जो मांदी में इसी पाना से बने पतरी में खाना खाते है।

साथियों इस जलप्रपात के पास ही एक गुफा भी है हालांकि हम गुफा तक पहुंच नही पाए। इस गुफा के ऊपरी भाग में एक मंदिर भी है जहाँ शिव जी विराजमान है।

अगर इस जलप्रपात तक पहुंच मार्ग सही हो जाए तो यकीनन यह हमारे जिले का ही नही पूरे छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन सकता है, ऐसा मुझे लगता है।


पिछली बार मुझे छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. पीसी लाल यादव, राजकुमार मसखरे सर और भावेश्वर पटेल सर के साथ मोहगांव के पास धांस नामक जलप्रपात जाने का अवसर मिला था, वो जगह भी बहुत शानदार है। अगर आप और भी जलप्रपात देखने चाहते है तो ठाड़पानी जलप्रपात, धांसजलधारा के अलावा हमारे जिले में और भी जलप्रपात है जैसे इसी क्षेत्र में कुँआधांस जलप्रपात है। छिंदारी डैम के पास नथेला जलप्रपात है। भोथली-भुजारी का जलप्रपात और कउंरवा जलप्रपात भी आप घूमने जा सकते है।

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