श्री रुक्खड़ स्वामी मंदिर खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिले के खैरागढ़ नगर में स्थित है। यह भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ भगवान भोलेनाथ विभूति(भस्म) रूप में विराजमान है। खैरागढ़ के प्रतापी राजा टिकैत राय के समय में ही अमरकंटक की ओर से रुक्खड़ बाबा का आगमन हुआ था। बाबा रुक्खड़ स्वामी ने यही अपनी धुनि रमाई और इसी स्थल पर भभूति अर्थात राख से पीठ की स्थापना की जिसकी पूजा भगवान भोलेनाथ के रूप में आज भी निरंतर जारी है। विशेष रूप से श्रावण व महाशिवरात्रि पर मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
राजा टिकैत राय का बाबा के प्रति अगाध आस्था थी। स्वामी जी ने टिकैत राय से कहा था "जब तक मेरी गढ़ी, तब तक तेरी गढ़ी" मतलब जब तक यह पीठ रहेगा। तब तक ख़ैरागढ़ रहेगा।
खैरागढ़ राज्य और नागवंश के अतीत पर दृष्टि डालें तो खैरागढ़ के इतिहास का आंरभ खोलवा-परगना से होता है जिसे मंडला के राजा ने लक्ष्मीनिधि कर्णराय को उनकी वीरता के लिए सन 1487 ई में पुरस्कार स्वरूप दिया था। इन्ही के चारण कवि दलराम राव ने ही पहली बार छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग अपनी कविता में 1497 ई. में किया था। वर्तमान खैरागढ़ में नागवंशी राजाओं के इतिहास का आरंभ राजा खड़गराय से हुआ। वे खोलवा राज्य के सोलहवें तथा नई राजधानी खैरागढ़ के प्रथम राजा थे। उन्होंने पिपरिया, मुस्का तथा आमनेर नदी के मध्य अपने नाम से एक नगर बसाया। उस नगर के चारों ओर खैर वृक्षों की अधिकता थी। इतिहासकार दोनों मान्यताओं से सहमत हैं कि राजा खड़गराय या खैर वृक्षों की अधिकता की वजह से नगर को खैरागढ़ कहा जाने लगा।
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